चील गिद्ध कौओं का इतना ही याराना है
एक ज़िंदा कौम को बस लाश सा बनाना है
लाश बनते तक ज़रा माहौल भी बनाना है
चिल्ल-पों कांव-कांव नारा लगाना है
मरते हुए को और ये एहसान भी जताना है
कि इस तरह से उनको आज़ाद ही कराना है
इक दूसरे को तब तलक धीरे से कुहनियाना है
और साथ साथ आँखों में चुपके से मुस्कियाना है
सियार भेड़ियों को भी इस खेल में मिलाना है
और भोंपुओं के बीच भी , लोथड़ा गिराना है
आप ना मायूस हों, ये यूं ही आना जाना है
शुक्रवार है आपको वीकेंड भी मनाना है
तो मनाते हैं वीकेंड किशोर कुमार के साथ -----
एक ज़िंदा कौम को बस लाश सा बनाना है
लाश बनते तक ज़रा माहौल भी बनाना है
चिल्ल-पों कांव-कांव नारा लगाना है
मरते हुए को और ये एहसान भी जताना है
कि इस तरह से उनको आज़ाद ही कराना है
इक दूसरे को तब तलक धीरे से कुहनियाना है
और साथ साथ आँखों में चुपके से मुस्कियाना है
सियार भेड़ियों को भी इस खेल में मिलाना है
और भोंपुओं के बीच भी , लोथड़ा गिराना है
आप ना मायूस हों, ये यूं ही आना जाना है
शुक्रवार है आपको वीकेंड भी मनाना है
तो मनाते हैं वीकेंड किशोर कुमार के साथ -----
- फेसबुक पर प्रकाशित (४ मार्च २०१६)
(सन्दर्भ - JNU प्रकरण में राष्ट्रीयता की खिल्ली उड़ाने की हद तक पहुँच जाने वाले प्रगतिशीलों के लिए)
No comments:
Post a Comment