Tuesday, September 14, 2004
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी - १
हम बहुत सोचे और ऐसा हुआ जैसा कि ठेलुहों के साथ परंपरा रही है, सोचते-सोचते पाये कि हम सो गये. ये भी तब जाने जब हमें जगा के बताया गया कि खर्राटे बजाय सोफे के अपनी खटिया में मारे जायें तो ध्वनि प्रदूषण कम होता है और हम नखरेपूर्वक मान गये. लेकिन जब उठे तो देखे कि हम अब भी चिंतन मुद्रा में हैं तो हमें चिंता हुई और हमारे ठेलुहा-धर्म ने हमें धिक्कारा.
तब तक चाय-वाय पीकर हम अपने को उद्धार करने की मुद्रा में आ चुके थे सो जानना. अब जरा चित्त को संभाल मूंगफली टूंगते हुए हम बैठे इस पर चिंता करने कि हम चिंतित क्यों रहे. फिर खतरा भांप के कि ये लगता है फिर चिंतित होने की निशानी है हम चालाकीपूर्वक फिर कंपोज्ड हुए.
इसी बीच हमारे एक मित्र फुनियाये और छूटते ही पूछे वही सनातन प्रश्न -' का गुरू, क्या मौज हो रही है?' ठेलुहई के इस प्रश्न के पीछे जो 'अत्र कुशलं तत्रास्तु' दर्शन छिपा होता है वह यह कि हम तो मौज कर रहे हैं और मान कर चलते हैं कि तुम भी मौज ही कर रहे होगे और जो नहीं कर रहे हो तो कनपुरिहा इश्टाइल में 'कोई बात हो तो बताना गुरू' जैसा कुछ फेंकने पर क्या उखाड लोगे.
हमारे पिताजी कहते हैं -
ठेलुहों के तीन नाम
गुरू, उस्ताद, पहलवान
अब इस छंद में 'ठेलुहों' वाले स्थान में समय-धर्म अनुसार जो विशेषण बदल लेते हैं, वही इस कलिकाल में ज्ञानी कहाते हैं और ऐसे हमने कई सबूत जुटाये हैं, सो जानना.
देखा जाय तो हमारे ऋषि-मुनि कोई कम ठेलुहा नहीं थे. ये जो हर भजन-पाठ के बाद नारा लगाने की परंपरा रही है - 'सुखिनौ भवन्तु' यानी हम भी मौज करें और तुम भी क्यों चूको? और भी कुछ ऐसा कि सौ शरद जियो और जो है सबकी छाती पर मूंग तो दलो ही. 'निरोग रहो' अर्थात् जब तक मुस्टंडेपन की अवस्था को न प्राप्त होगे तो बाकी सब कार्य कइसे संपन्न होवेंगे, बहरहाल पैकेज डील में यह भी लिये जाओ.
तो हम बता रहे थे कि इसी ऋषि-परंपरा में जो फोन पर 'का गुरू, क्या मौज...' वाला प्रश्न पूछा जाये तो उसका उत्तर देना सामान्य ठेलुहाचार-विरुद्ध माना गया है काहेसेकि वसुधैव कुटुंबकम् के तहत मान लिया गया है कि तथाकथित 'गुरू' मौजरस लीन हैं, सो हम भी घाघपने का परिचय देते हुए उत्तर दाब गये और जवाबी डाक से पूछे कि कहाँसे बोल रहे हो, जबकि इस पर संदेह करने का कारण तो नहीं था कि वो मुँह के अलावा और कहीं से नहीं बोले. बोले हों तो हम सुने नहीं.
..... खतम नहीं हुआ है (इतनी ज़ल्दी?)
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2 comments:
ठेलुहे लगता है लिखते-लिखते सोफे से खटिया पर आ गये और कामर्शियल ब्रेक की अवस्था को प्राप्त हुये.ब्रेक के ब्रेक होने का इंतजार है.
thalua ji
bhaut acha likhe ha sadhuvad hindi me coment kar sake aise marg darsan kijiaga
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