Sunday, May 31, 2020

दुख प्रतियोगिता

कुछ व्यक्ति स्वभाव से आहें भरने वाले होते हैं । वह दुःख ओढ़ने को गरिमायुक्त बनाते हैं, सुख को छिछोरपने के मुहल्ले में पहुँचा देते हैं

साधारणतया उनके वाक्यों में ठंडी साँसों के पंक्चुएशन के साथ बातों में पीड़ा से जुड़े शब्द सब्ज़ी के ऊपर धनिया से छितरे होते हैं

वह दुःख ढूँढ लाते हैं - सुख के भीड़ भरे बाज़ार में किसीकूचे से उठा लाते हैं एक दुःख को , उस दुःख को भी जो पहले सुखी हुआ करता था । समाज, देश , ब्रह्मांड - कोई भी परे नहीं उनके दुखान्वेषी कोलंबस से

वह आपको कभी भी रोक के कह सकते हैं कि “गुरू देखा? हमसे तो देखा नहीं जाता |” वह समोसे को चटनी में डुबो कर खाते आपको हुए यह भी बतलाते हैं कि ऐसा ज़ुल्म देख कर उनकी आँखें भर आती हैं और हम यहाँ समोसे टूँग रहे हैं | वह कई बार रोते रोते रुक सकते हैं, उनके आंसू छलक-छलक जाने को आतुर होकर वापस अपने बिल में चले जा सकते हैं |

वह वीरतापूर्वक आपके पहाड़ को लांघ कर अपने राई भरे दुःख को यों गगनचुंबी बना सकते हैं कि आह करते हुए भी आप वाह कर बैठते हैं

सफल किस्म के दुःख -प्रकाशक इतना दुःख प्रकट कर सकते हैं , कि आपके दुःख का स्तर आपको बड़े टुच्चे किस्म का प्रतीत होने लगता है और आप उसको एक अपराध बोध के साथ अंदर जज़्ब कर लेते हैं और आप अपना समोसा नीचे रख देते हैं (जबकि आपका मन उसे दूर फेंक देने का हो रहा होता है )|

इस ७० मिमी हाई डेफ़िनिशन क्वालिटी दुःख प्रकाशक उपलब्धि के बाद आपके ऊपर उनकी दृष्टि की शक्ति जो होती है वह आपसे यही कहती प्रतीत होती है कि रे पापी, यह सब होते हुए भी तू स्वस्थ है, खड़ा है, और निर्लज्ज भावपूर्वक आनंद से है, आएँ ?

आप मन ही मन धन्यवाद दे सकते हैं कि आप कलियुग में है, वरना सतयुग जैसे बीहड़ इन्टॉलरेंट काल में तो धरती स्वयं फट जाती और आप उसमें अन्तर्ध्यान हो जाते |

उनसे मिलने के पश्चात आप स्वयं को धिक्कारते के मूड में आ जाते हैं | आप काल्पनिक जूते लाकर बिना आवाज़ के अपने ऊपर १००-२०० लगा लेते हैं , फिर भी आपको वह शांति नहीं मिल पाती कि आप स्वयं से कह सकें कि हो गया पहलवान, अब बस करो | ग्लानि एक कब्ज़ियत के अटकाव की भांति कहीं फँसी रहती है|

आप होंगे पहले से दुखी - हुआ करें , दुःख प्रकाशक तो उसके ऊपर अपना दैदीप्यमान दुःख लाद के निकल लेंगे, हल्के होकर

हम दुखी रहते हैं कि हमारा दुःख छोटा निकलता है - वह सुखी कि उनके दुःख जीत जाते हैं


1 comment:

Norah Ashley said...

This is a beautifully written and insightful reflection on the nature of sadness.