Thursday, December 02, 2004

इनविटेशन - आइये, अपनी नेशनल लैंगुएज को रिच बनायें

जस्ट अभी ब्रेकफास्ट फिनिश करके उठे थे. थोड़ा हेडेक था, प्राबेबली ओवरस्लीपिंग इसका रीजन था.

एक फ्रेंड का फोन आ गया, काफी इंटिमेट हैं, लेकिन अपने को टोटल अमेरिकन समझते हैं. पूरे टाइम इंगलिश में कनवरसेशन! अरे अपनी भी तो कांस्टिट्यूशन में रिकग्नाइज़्ड एक नेशनल लैंगुएज है. लेकिन एजुकेटेड होने का यही प्राब्लम है, स्टेटस सिंबल की बात हो जाती है. ब्रिटिश लोग तो चले गये बैग एंड बैगेज, स्लेव मेंटालिटी यहीं छोड़ गये.


इन मैटर्स में हम भी बहुत स्ट्रेटफारवर्ड है. हम कांटीन्युअसली अपनी मदर टंग में बोलते रहे. भई, हम तो इरिटेट हो जाते हैं इस काइंड के लोगों से.

अभी एक कमर्शियल वाच कर रहे थे बासमती राइस के बारे में जिसमें किट्टू गिडवानी अपनी डाटर से कहती है - 'होल्ड इट सीधा. इफ यू वांट टू डू इट प्रापरली, योर प्रेपरेशन हैज टू बी बिलकुल पक्का.' कैसी लंगड़ी लैंगुएज है ये! लोग प्राउडली इसे हिंगलिश बताते हैं. कितना रिडिक्युलस फील होता है जब कोई अपना फैमिली मेम्बर ही ऐसे बोलता है.

अरे ऐड को ऐसे भी प्रेजेन्ट कर सकते थे - 'इसको स्ट्रेट होल्ड करो, प्रापरली करने के लिये प्रेपरेशन बिलकुल सालिड होनी चाहिये.'

इसे कहते हैं 'मैकूलाल चले माइकल बनने'.


अब देखिये न, जैसे पंकज बहुत ही करेक्ट लिखते हैं कि अपनी लैंगुएज में टाक करना आलमोस्ट अपनी मदर से टाक करने के जैसा है. कितना अच्छा थाट है! यही होता है कल्चर या क्या कहते हैं उसको- संस्कार (अब इसके लिये कोई प्रापर इंगलिश वर्ड ही नहीं है, यही तो प्रूव करती है अपने कल्चर की रिचनेस )


सिटीज की तो बात ही छोड़ दो, विलेजेज में भी बड़ा क्रेज़ हो गया है. बिहार से रीसेंटली अभी एक मेरे फ्रेंड के फादर-इन-ला आये हुए थे, बताने लगे - 'एजुकेसन का कंडीसन भर्स से एकदम भर्स्ट हो गया है. पटना इनुभस्टी में सेसनै बिहाइंड चल रहा है टू टू थ्री ईयर्स. कम्प्लीट सिस्टमे आउट-आफ-आर्डर है. मिनिस्टर लोग का फेमिली तो आउट-आफ-स्टेटे स्टडी करता है. लेकिन पब्लिक रन कर रहा है इंगलिश स्कूल के पीछे. रूरल एरिया में भी ट्रैभेल कीजिये, देखियेगा इंगलिस स्कूल का इनाउगुरेसन कोई पोलिटिकल लीडर कर रहा है सीज से रिबन कट करके.किसी को स्टेट का इंफ्रास्ट्रक्चरवा का भरी नहीं, आलमोस्ट निल.' (अपने ग्रैंडसन से भी आर्ग्युमेंट हो गया, सीजर-सीजर्स के चक्कर में उनका. मुँगेरीलाल जी डामिनेट कर गये इस लाजिक के साथ - 'हमको सिंगुलर-पलूरल लर्न कराने का ब्लंडर मिस्टेक तो मत ट्राई करियेगा, हम ई सब टोटल स्टडी करके माइंड में फिल कर लिया हूँ और हम नाट इभेन अ सिंगल टाइम कोई लीडर का राइट हैंड में सीजर देखा हूँ मोर दैन भन. सो हमसे तो ई इंगलिस बतियायेगा मत, नहीं तो अपना इंगलिस फारगेट कर जाइयेगा.' लास्ट सेंटेंस में हिडेन थ्रेट को देखकर ग्रैंडसन साइलेंट हो गये )


कभी लेजर में बैठ के सोचो कितना ऐनसिएंट कल्चर है इंडिया का . लैंगुएज, कल्चर, रिलीजन डेवेलप होने में, इवाल्व होने में कितने थाउजेंड इयर्स लगते हैं.

हमारे वेदाज, पुरानाज, रामायना, माहाभारता जैसे स्क्रिप्चर्स देखिये, क्रिश्ना, रामा जैसे माइथालोजिकल हीरोज को देखिये, बुद्धिज्म, जैनिज्म, सिखिज्म जैसे रिलीजन्स के प्रपोनेन्ट्स कहाँ हुए? आफ कोर्स इंडिया में.

होली, दीवाली जैसे कितने कलरफुल फेस्टिवल्स हम सेलिब्रेट करते हैं. क्विजीन देखिये, नार्थ इंडिया से स्टार्ट कीजिये, डेकन होते हुए साउथ तक पहुँचिये, काउण्टलेस वेरायटीज. फाइन आर्ट्स ही देखिये क्लासिकल डांसेज. म्यूजिक, इंस्ट्रूमेंट्स - माइंड ब्लोइंग!

अरे हम इंडियन्स को तो तो ग्रेटफुल होना चाहिये कि हेरिटेज में हमको यह सब मिला, फिर भी एक रैट-रेस मची हुई है कि कौन मैक्सिमम एक्सटेंट तक फारेनर बन सकता है. नेशनल प्राइड भी कोई चीज है या नहीं?


हम तो एक सिंसियर अपील ईशू कर सकते है कि सारे ब्लागर लोग तो एजुकेटेड क्लास से है. अच्छी जेन्ट्री यहाँ आती है, डेली ब्लागिंग के लिये आप हिन्दी स्क्रिप्ट यूज करते हैं, आप लोग ऐट लीस्ट केयर करें, रेगुलर कनवरसेशन में हिंदी बोलें, किड्स को मिनिमम रीड और राइट करना तो टीच कर ही सकते हैं. अब मिडिल-क्लास ही तो नेशन के फोरफ्रंट पर होता है, यह चेंज एलीट-क्लास की कैपेसिटी के बाहर का मैटर है. इस मिशन के लिये नेसेसरी है डेडिकेशन, डिवोशन, कोआपरेशन, कनविक्शन, ऐम्बीशन. और इन केस आपके कुछ सजेशन हों तो मेल करें, हेजिटेट न करें.

हमारे हार्ट में जो काफी टाइम से कलेक्ट हो रहा था, उसको तो पोर कर दिया और ट्रू इंडियन की तरह जेनुइनली इवेन होप भी कर रहे हैं कि रिजल्ट अच्छा होगा.

बट क्या ये एनफ होगा?

36 comments:

अनूप शुक्ल said...

राइट करने में थोङा डिले तो हुआ बट जो राइट किया है अबाउट इंडियन कल्चर वो सटिस्फाईंग है.एनटायरली न्यू अप्रोच है.काफी फनी है और इजी टु अन्डरस्टैंड है.हम तो अपने चिल्ड्रेन से डेली वन हावर मिनिमम हिंन्दी में कन्वरसेशन करते हैं बिदाउट फेल.इवेन हालीडेस को भी.आलदो यह लेट हो गया है येट पंकज नाइस गाय है.वह इसको सरटेनली इंडियन कल्चर वाले कम्टीशन में इन्क्लूड कर लेगा.गुड भर्क किया है. आई. के.कान्ग्रैट्स.

इंद्र अवस्थी said...
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इंद्र अवस्थी said...

पंकज नाइस गाइ तो है बट उसको फोर्स करना प्रिंसिपल के अगेंस्ट होगा. हाउएवर हम प्लेजंटली सरप्राइज़्ड हैं कि जाब में इतना बिजीहोकर भी वन आवर कनवरसेशन का टाइम निकाल लेते हो. लगता है अपनी नेशनाल
लैंगुएज का गुड लक अच्छा है!

कांग्रेट्स के लिये थैंक्यू, इनकरेजमेंट से ही हमारी क्रियेटिविटी इन्सपायर होती हैं, अदरवाइज एनीटाइम एक्सपायर हो सकती थी.

Anonymous said...

अरे इ सब देख कर हम इतना सेंटीमेंटल हो गया है कि एक्सप्रैस्नस ही नहीं है। थॉटस तो एकदम सिंक कर गया है। एक बाद रिमेम्बर आती है एक नेता जी हिंदी दिवस को ऐसे सम्बोधित करते हैं - आज हिंदी डे है इसलिए मैं लेक्चर हिंदीं में ही डिलीवर करुँगा।

अवस्थी जी इस पोस्ट के लिए तो एक नई कैटेगरी होनी चाहिए।

पंकज

विजय ठाकुर said...

हम तो मुरीद हो गये आपके बस। पढते पढते नरभसा गये थे कि ई कौन से कटेगरी का निबंध पढ रिया हूँ निश्चित तौर पर व्यंग्य से भी बढकर अपील किया हमको।

आलोक said...

ठलुआ जी, हमने जिस जिसको यह सेण्ड किया कि इसको रीड करो, वह हमसे पूछ रहे हैं कि आपने हमें ही क्यों सेण्ड किया है, कहीं हम थोड़ी ही ऐसे बोलते हैं। एक और बोले कि हाँ कभी कभी इङ्ग्लिश के वर्ड्स बीच में आ जाते हैं पर हम ग्रामर तो हिन्दी का ही मेण्टेन करते हैं न, और हमारी थिङ्किङ्ग भी हिन्दी में होती है।

Jitendra Chaudhary said...

आपका ऐसै रीड किया, बहुत ही इन्टरस्टिंग था...हमरी डिक्शनरी मे कौनो वर्डवा ही नही है,तारीफवा के लिये.....आप इन्हइ वर्डवा को तारीफवा की टोकरी मे डाल देवे,

बहुत ही अच्छा लिखे हो इन्दर बाबू, लेकिन ट्रेन के छूटने पर ही टेशन क्यों पहुँचते हो...थोड़ा जल्दी जल्दी सामान बांधा करो.

Unknown said...

अवस्थी जी, हमको तो मिलावट से थोड़ा नहीं बहुत गुरेज़ है और आपने हमारे दिल के तार छू लिये। बहुत समय बाद इतना अच्छा व्यंग्य पढ़ने को मिला है। आगे भी इन्तज़ार रहेगा ।

हम तो आजकल ये आई आई टी के दुकान वालों से परेशान हैं, जिसको देखो ट्वेन्टी फ़ाइव, थर्टी फ़ाइव और न जाने क्या क्या बकता है, दिमाग खराब हो जाता है सही में। मन तो करता है कि घुमा के एक उल्टे हाथ का कन्टाप मारूं कि सारी अंग्रेजी बाहर ही आ जाये, पर क्या करें ज़माना सही नहीं है आजकल ।

आशीष

Kalicharan said...

Hansa Hansa ke stomach main head ache kara diye aap Thalua Naresh. Apni Matra tongue hinglish padh ke bahute maja aya.

आलोक said...

एक और मित्र को दिखाया तो उन्होंने ने कहा कि यार कॅन यू प्रोवाइड ऍन इङ्ग्लिश ट्रांस्लेशन? आई ट्राइड वेरी हार्ड बट कुड नॉट अण्डर्स्टैण्ड इट।

इंद्र अवस्थी said...

जितेन्दर भइया, सामान बांध के टिकट तो हमने खरीदा था बिना रिजरवेशन का कि कौनो गाड़ी मिल जायेगी तो हम चढ़ जायेंगे, लेकिन शुकुल और आप लगता है कि हमको 'भारतीय कल्चर क्या है' वाली एक्सप्रेस ट्रेन में चढ़ा कर ही दम लोगे. अपने भारत में जहाँ ट्रेन में चढ़ने वालों से ज्यादा चढ़ाने वाले होते हैं, वहीं यह संभव है. ऊपर से तुर्रा शुकुल का ये कि एक्सप्रेस का टीटी (पंकज) जान-पहचान का है इसलिये नाइस गाइ है.

आलोक जी, आपके यह मित्र कौन सी श्रेणी के हैं - 'योर प्रेपरेशन हैज टू बी पक्का' वाली या 'प्रेपरेशन सालिड होना मांगता' वाली, अकार्डिंगली ट्रांसलेशन का अरेंजमेंट किया जाय. इन द मीन टाइम जो अभेलेबल है, उसी से भर्क आउट करने का ट्राई कीजिये.

आशीष, जान कर खुशी हुई कि आप मिलावटी माल पसंद नहीं करते शुद्ध देसी के आगे. वैसे मुझे लगता है कि मिलावटी माल वाले कंटाप खा के भी समझ नहीं पायेंगे कि ये परसाद उन्हें क्यों मिला. उन्हें उन्हीं की भाषा में बातों के कन्टाप लगायें तो देर तक झनझनायेगा. वैसे आपका धन्यवाद इसलिये कि इस लेख का खाका मेरे मन में बहुत दिन से था, लेकिन पहली पंक्ति मुझे आपके ब्लाग से मिली जिसमें मम्मी अपने बेटे से कहती है कि 'दूध फिनिश कर लो'

पंकज, ये नेता वाला किस्सा पहले क्यों नहीं सुनाया, टोप देते इसको भी (अभी कौन सी देर हुई है, ब्लाग में यही तो मौज है, जब चाहे सुधार लो)

ठाकुर और कालीचरण को भि धन्यवाद हौसला बढ़ाने के लिये

Anonymous said...

आपका लेख पढ़कर बहुत मजा आया.
नरेश

Raman said...

हिन्गलिश को आंग्ळहिन्दी में लिखके आपने एक नए एक्सपेरीमेन्ट की डेब्यू की है. हम तो कहता हूं कि ई टोटल मर्डर है.

Raman said...

आपको कांग्रेट्स करना फ़ारगेट हो गया. मेनी मेनी बधाईज़.

Kalicharan said...

का गुरू मजे में ? बहुत दिनों से उवाचे नही उस्ताद

viplavi said...

sabka comment read kar humko bhi something write dene ka feeling aaya hai.dada me too is mission me with you hoon.bahut hi nicely written theluwaee hai.good work hai continue rakhiyee.........

viplavi said...

sabka comment read kar humko bhi something write dene ka feeling aaya hai.dada me too is mission me with you hoon.bahut hi nicely written theluwaee hai.good work hai continue rakhiyee.........

इंद्र अवस्थी said...

भोपाली जी, हम बिलकुल मजे में और उवाचने को उचके बैठे हैं (यानी कुछ सामान ड्राफ्टिया दिया है). भोपाल में खां का प्रयोग क्यों और कैसे होता है इसका उत्तर तो लगता है आप जानते हुए भी नहीं देंगे...
पंचायतिया जी, हिंदी में लिखिये रोमन छोड़कर( http://www.chhahari.com/unicode/ जाकर यूज कीजिये)

Jitendra Chaudhary said...

अब का अगले साल लिखोगे?
बहुत दिन हो गये.....अब कुछ टनटनिया भी दो.

Anonymous said...

Hindi main kiase likhe

Anonymous said...

Are Ram Ram Thalua Naresh..... Are ka kahi, hum banarasi babu to aapka BALOG padh kar dhanya ho gaya. Are babua ii jaan kar bahut accha laga ki uu pardeshwa mein tohar jaisan BARIGHT ISSTUDENT hamre area ka baa. Hum bhi abhi pardeshwa mein aapan BANARASI culturewa asthapit karne ka kosis kar rahe hain. Mailwa-sailwa karte rahiyo.....
Ram Ram
- Banarasi Babu

इंद्र अवस्थी said...

Banarasi Babu, Dhanyavad, apna nam-waa to bataaiyega.
Baakee hindi mein likhne ke liye dekhiye-
http://www.akshargram.com/sarvagya/index.php/Howto

oxy_moron said...

bawaal hai bhaiya bawaal!! hum bhi aapke bagal-A se hain...bole to bagal ke jilaa se..aap anyathaa na samjhein;)..thoda jaldi mein hain isliye abhi poora theek se padhe nahi..par bahut-A jaldi aayenge aur vistaar se padhenge aur tippani bhi karenge!

:)

Anonymous said...

ख़ुदा की क़सम, मज़ा आ गया
हिन्दी को मारकर, बेशरम खा गया.
मगर हिन्दी तो अभी ज़िन्दा है!
अरे ये जीना भी कोई जीना है, ठेलुआ!!

वाक़ई मज़ा आ गया.
रविकान्त

Anonymous said...

आज आपका ये लेख पढा; सच कहें तो इसे और साथ में सारी प्रतिक्रियाओं को पढ कर हंसते-हंसते पेट में बल पङ गये। पर असल में बात हंसने से ज्यादा सोंचने की है। क्या है हिन्दी का भविष्य? अगले सौ सालों में कितने लोग ऎसे रह जायेंगे जो हिन्दी बोल और पढ दोनों सकें। लगता है बस हिंग्लिश का ही राज रह जायेगा।

Basera said...

ईन्डीड वैरी फ़न्नी, बट सो लैन्थी कि सारे कामेंट्स पढ़ते पढ़ते थक गया। ओफ़ कोर्स आई विल सर्कुलेट इट अराउन्ड।

Pravin Gupta said...

Good one !
Keep it up buddy.

Anonymous said...

कमाल है भई ठेलुआ जी कमाल कर दिया ।
धोती फ़ाड़ कर(बहुतै)हैंडकरचीफ़?(रूमाल)कर दिया ॥
भंडरफ़ुल !
तबियत गार्डन-गार्डन हो गई .

Anita kumar said...

इंद्र जी
अनूप जी के कहने पर हम आप की ये पोस्ट नहीं नहीं व्यंग पढ़ने आये थे, पोस्ट के साथ साथ सब की टिप्पणी पढ़ कर हंसते हंसते लोट पोट हो गये। बहुत ही मजेदार लिखा है। खैर हिन्गलिश का प्र्योग तो हम भी करते हैं पर बिहारी ससुर जी की तरह अग्रेजी बोलने का भूत नहीं सवार रहता। अब बिलकुल शुद्ध हिन्दी तो बोलना ठीक भी न होगा, जैसे ट्रेन को लौह पथ गामिनी कहें तो लोग सीधा हमें आगरा भेज देंगे। क्या कहते है आप? हम आप के चिठ्ठे पर नियमित रूप से आते रहेंगे अब।
इतना बड़िया लिखने के लिए आप को प्रणाम

Anonymous said...

Sir,
why are you not writing anymore these days?
I enjoyed readning your blogs.

regards
-divya

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Unknown said...

आपने मिलावट को बहुत अच्छे से ज़ाहिर किया है| अब सवाल ये है कि दूध में पानी है या पूरा दूध ही पानी है, मुझे तो अब बाद वाली बात ज़्यादा सही लगने लगी है|

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

आज 10 साल बाद भी उतना ही सामयि‍क है . हो सकता है आगे 100 में भी इतने ही चाव से पढ़ा जाएगा.

Anamika Vajpai said...

ई त मोर दैन एनफ हो गवा। हम तक पहुँचै ख़ातिर इट टुक सो मैनी इयर्स। माइण्डै ब्लोइंग।

Anamika Vajpai said...

ई त मोर दैन एनफ हो गवा। हम तक पहुँचै ख़ातिर इट टुक सो मैनी इयर्स। माइण्डै ब्लोइंग।

इंद्र अवस्थी said...

dhanyavaad