Thursday, September 22, 2005

बबुरी का बबुआ - भये प्रकट कृपाला

बबुरी का बबुआ बढ़ गया एक साल और आगे, जहां था वहीं से (क्योंकि यही तो ललकार थी उसकी). अहसान किया मान्य नियमों पर कि कि जहां था वहीं से आगे बढ़ा. अगर जहां नहीं था वहां से आगे बढ़ने की घोषणा कर देता तो क्या कर लेते.

तो जहां था वहीं से आगे बढ़ गया. मर्द (या ठाकुर) की एक बात. कह दिया तो कह दिया. और सितंबर के महीने में बढ़ा. अब जैसा कि ठाकुर खुद बता चुके हैं कि सितंबर अवतार में इनका कोई दोष नहीं है उसी प्रकार एक साल और आगे बढ़ने में भी इनका कोई हाथ नहीं था. वैसे भी समय और ठाकुर कब एक दूसरे के साथ चले हैं.

कविताएं कभी हमें पढ़ के समझ में नहीं आतीं. कोई प्लेट में सजा के लाये और बताये कि देखो इस प्रसंग में कितनी अच्छी बात कही गयी तो थोड़ा समझ में आती है. या कोई कवि फर्स्ट हैंड सुना रहा तो बाडी लैंगुएज के साथ जल्दी समझ आती है. ( अपवादस्वरूप वीर रस में बाडी लैंगुएज की जरूरत नहीं पड़ती, हम पढ़ के दूर से ही समझ जाते हैं). अब 'अतीत ज्यों तलहटी में पड़ा सिक्का' से हम क्या समझें? हमने बैठ कर कई तरह से सोचा.
ठाकुर गरज रहे है - 'ऐ अतीत, तू बीत गया है. तेरी यह मजाल. जा तेरी गति फेंके हुए सिक्के सी हो, जिसे फेंककर हम भूल भी गये हैं कि इस पैसे के हम चने भी खा सकते थे. जा, मैं तेरा मुँह भी नहीं देखना चाहता (जैसे चाहते तो देख लेते)'
ठाकुर मिमिया रहे हैं - ' हे आदरणीय अतीत, तुम चले गये, हम तुम्हारा इंतजार वर्तमान में करते रहे. अब तलहटी के सिक्के की भांति हाथ से फिसल गये हो और हमें टीज कर रहे हो कि देखओ इस पैसे की तुम बीड़ी फूंक सकते थे और दम हो तो अभी भी कूद के पा सकते हो. हा, तुम क्यों फिसले?'
ठाकुर दार्शनिक होते हैं - 'जो आया है वह जायेगा. जो गया है वह आयेगा. जो खाया है वह निकलेगा, जो निकला है वह फिर खाया जायेगा. हे अतीत, तुम अतीत हो चुके हो, परंतु हमें तुम पानी के नीचे सिक्के की भांति दिखते हो. तुम्हें फिर से मुट्ठी में करके वर्तमान बनाया जा सकता है.'

हम ठाकुर की तरह-तरह की मुद्राऐं बनते और बिगडते देखते हैं, फिर अर्थ निकालते है.

ठाकुर कर शुभचिंतकओं की कमी नहीं. इनकी छोटी से छोटी बात पर लोगों की नींद हराम हो जाती है. बालक जब नया-नया इंडोनेशीया पहुंचा तो पहली फोटो ईमेल की, ठाकुर गन्ने के खेतों में अकेले खड़े हुए. जनता चिंतातुर होके टूट पड़ी प्रश्नों के साथ
- ठाकुर अकेले खड़े हैं.
- हाँ, लोटा तो नहीं दिखा हमें भी
- क्या है नहीं?
- क्या यह फोटो वारदात से पहले की है या बाद की?
- ठीक कहते हो, यह बाद की बात है, सारे सबूत मिटाने के बाद

इस हादसे पर करीब १९ मेलों, ८ फोनों का १२-१२ परिवारों के बीच आदान-प्रदान हुआ.

तो यह है ठाकुर की लोकप्रियता का प्रमाण.

बड़े बीहड़ किस्म का संवेदनशील जंतु है ठाकुर. जैसा फुरसतिया मुनि बतलाते हैं, बड़े हिसाब से पत्र लिखने पड़ते हैं ठाकुर को. पत्रों के सारे प्रश्नों का बाकायदे बही खाता मेंटेन करते हैं यह. तगादे यों हो सकते हैं, 'मेरे तीसरे पत्र के पांचवे पैरे में चौथे प्रश्न का उत्तर नहीं मिला' (शुकुल से टोपा) या 'प्रियवर , (गुस्से में गुरुवर) आपने नंदू को जो उत्तर अभी भेजा है, वह मैंने मार्च १९८८ में रात को ७ बजे किदवईनगर में पूछा था'. कोई सुपारी ले तो बताना ये भाई फाइलें चोरी करवानी हैं ठाकुर की तिजोरी से.

ठाकुर मोतीलाल नेहरू री. इं कालेज में हमारे जूनियर रह चुके है. ठाकुर कालेज में ही कवि निकल गये थे और तभी से हम अकवि लोगों पर इम्प्रेशन झाड़ते रहे हैं. इस प्रक्रिया में कुछ कविताएँ तो हम वाकई समझ भी चुके हैं. जूनियर परंपरानुसार पुत्रवत होता है (शुकुल अपवाद हैं, वैसे एक कारण यह भी बताया गया है और जिसकी जांच हम कर रहे हैं कि वह सीनियर थे). लिहाजा टाकुर को बधाइयाँ और जहाँ थे वहीं से आगे बढ़ते रहने के लिये शुभकामनाएँ.

17 comments:

Anonymous said...
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अनूप शुक्ल said...

अब तुम कहीं छिप जाओ और आंखें मूंदे-मूंदे कल्पना करो बबुआ के सवालों की जिसमें संगति की गति का तकादा भी होगा।

RAJESH said...

प्रियवर ,
उपरोक्त बधाई-संदेश पर तो , कुछ न लिखना ही बेहतर है ।

डा॰कैलाश वाजपेयी लिखते हैं; "महास्वप्न का मध्यान्तर" में , "आदमी होना भी एक समस्या है।"
यहाँ पढ़ा मैंने , "ठाकुर दार्शनिक होते हैं -'जो आया है वह जायेगा. जो गया है वह आयेगा ………………."
आगे की पंक्ति में जो भाव हैं , वे सिर्फ पहली बार पढ़े जा सके। दुबारा , पढ़े नहीं जा रहे , लिखने से पहले , बगल का माऊस उछल कर हाथ पकड़ ले रहा है। कह रहा है , यह भाव इस जन्म के लिये
नहीं , वत्स , पुनर्जन्म के लिये लिखा गया है , जब तुम चौरासी लाख योनियों से गुजरोगे।

टिप्पणी पर टिप्पणी लिखना जरूरी है । जैसा मैं "तुलसी संगति शुकुल की-हैप्पी जन्मदिन" वाली पिछले पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में लिख चुका हूँ , "संगति की गति" में , वह प्रविष्टि मैंने शामिल कर ली है । और , अब तो यह प्रविष्टि भी । सो , शुक्ला जी , चाहे तो , एक टिप्पणी और
लिखिये ।
-राजेश
(सुमात्रा)

Milf said...
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बहुत समय के बाद ऐसा कुछ पढा।

अँग्रेजी पढ के, भूल गया काफी कुछ।

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