Monday, November 22, 2004

ब्लागिंग के इस घाट पर, भई संतन की भीड़

भाँति-भाँति के प्राणी चिट्ठा-संसार में विचरते हैं. कोई इसकी नकेल कानपुर से संभाल रहा है तो कोई इंडोनेशिया से. कोई कुवैत की माटी ( अररर... बालू) खोदे है तो कोई मुंबई-पूना मार्ग में ही कैफे ढूँढ़ रहा है कि वहीं से ब्लागिंग के बाण चला दिये जायें. किसी ने रतलाम के चूहों को चुनौती दे रखी है कि देखें कौन ज्यादा अखबार कुतरता है तो अंबाला से सैन होजे, कानपुर से डलास, कलकत्ता से पोर्टलैंड पधारने वाले आमों, जलेबियों और पापड़ों से फुरसत पाते ही ताल ठोंक देते हैं. अभी तत्काल एक्सप्रेस भी पलेटफारम पर लेट से आ लगी है. आओ ठाकुर आओ!

'यह सब ऐसा किस प्रयोजन से करते हैं और इनके मन में क्या है?' - ऐसा प्रश्न हमने उत्सुक होकर केजी गुरू से किया था. उल्टे केजी गुरू ने हमसे प्रतिप्रश्न किया कि हे वत्स ब्लागिंग क्या है.


हम बोले कि हमरी मूढ़मति हमको यही बताती है और जो कि फुरसतिया को हम और हमसे टोप कर फुरसतिया दुनिया को बतला चुके हैं कि ब्लागिंग एक प्रकार की पेंचिश है जो गाहे-बगाहे लोगों से न्यूनाधिक मात्रा में लीक होती रहती है और थोड़ी-थोड़ी होती रहे तो सबके लिये हितकारी होती है.

केजी गुरू - तो ये ब्लागर कहाँ बसते हैं?
हम - ये मनुष्यों के बीच ही पाये जाते हैं. इंटरनेट पर इनमें झुण्ड में होने की प्रवृत्ति भी पायी गयी है. इनके फलने-फूलने के लिये झुंड का होना जरूरी है. अकेला ब्लागर भटकी हुई आत्मा होता है जो हाथ में मोमबत्ती लेकर 'आयेगा आने वाला' या 'कहीं दीप जले कहीं दिल' वाली मुद्रा में बेचैन रहता है.

केजी गुरू - ब्लागर के लक्षण क्या हैं?
हम - ठीक-ठीक तो ज्ञानी जन भी नहीं बता पायेंगे. पर इस प्राणी का व्यवहार उसी प्रकार होता है जिस प्रकार किसी निमंत्रण में मुफ्त के मिष्ठान्न की आशा रखने वाला सदैव आतिथेय से बगल वाले अतिथि के लिये और मिठाई लाने को कहता है.
केजी गुरू - कृपया आशय स्पष्ट करें.
हम - जैसा कि फुरसतिया मुनि बतला चुके है ऐसी प्रजाति के लोग पहले दूसरे के ब्लाग की तारीफ करते हैं, फिर भाग कर अपना ब्लाग पूरा करते हैं.


केजी गुरू - किस तरह की ब्लागिंग ज्यादा लोकप्रिय होती है?
हम - ब्लागिंग वही लोकप्रिय होती है जो लोगों के 'तन'-मन को छू जाये. अभी-अभी एक कन्याराशि के अंगरेजी ब्लाग को लोगों ने पढ़ा, टिप्पणियाँ कीं, उसका हिंदी में अनुवाद किया, अनुवाद पर टिप्पणियाँ कीं, टिप्पणियों पर टिप्पणियाँ कीं, उसी ब्लाग पर आधारित स्वतंत्र ब्लाग लिखे, फिर उन पर भी टिप्पणियाँ कीं. कई लोग इस प्रक्रिया में ज्ञानी कहलाये, कई स्वघोषित मूढ . भलमनसाहत की हद हो गयी इन दिनों.


केजी गुरू - उस ब्लाग ने किस प्रकार लोगों के तन-मन को छुआ सो समझायें.
हम- कन्याराशि तो योंही लोगों के मन को छू लेती है, साथ में कविता में प्रेम की अभिव्यक्ति शरीर के स्तर पर हो तो पुरुष- मन भावुक हो जाता है, कमजोर हो जाता है. लोकप्रियता भाव-विह्वलता के इन्हीं क्षणों की साक्षी होती है.


कई गंभीर जन मजाकिया बने तो कई विदूषकों ने इम्प्रेशन मारने की हद तक मनहूसियत ओढ़ डाली. कइयों ने लिंग-परिवर्तन की सलाह दी तो कई फिरी-फण्ड की महिमा बखानते हुए अपने नाम का ही लिंग-परिवर्तन करने को तैयार हो गये.

केजी गुरू - 'यानी मैं तेरे प्यार में क्या-क्या न बना'.

इसके बाद केजी गुरू ज़िद पर अड़े कि उनको भी कविता पढ़ायी जाये. कविता पढ़ते वक्त उनकी आँखों में चमक थी. खीसें निपोरन की अवस्था को प्राप्त थीं. बीच में उनकी आँखें भी मुँ दीं तो हमने घबरा कर उन्हें जगाया. वह जगे फिर बोले अभी पाँच मिनट में आते है और वह अंत:पुर में अंतर्ध्यान हुए।


पौने पाँच मिनट में वह और उसके पौने पाँच सेकेण्ड के भीतर गुरूपत्नी का नेपथ्य से प्रवेश हुआ. केजी गुरू का मुँह फुरसतिया के शब्दों में झोले सा लटका था और गुरूपत्नी (हमार भौजी) की त्योरियाँ आसमान पर चढ़ी थीं. ऐसे मौके पर ज्ञानियों ने पतली गली का प्रयोग विधिसम्मत माना है. पर हम कुछ मूढ़तावश और कुछ जड़तावश वहीं जड़वत खड़े रह गये.

गुरूपत्नी ने धुँआधार सवा मिनट का जो लेक्चर झाड़ा उसमें 'बुढ़ापा', 'चोंचले', 'शरम', 'परलोक', 'बड़े बच्चों का लिहाज' इत्यादि का समावेश था. फिर वह केजी गुरू को हमसे 'कुछ तो' सीखने की हिदायत देकर अदृश्य हुईं. उनके जाते ही केजी गुरू ने हमको आँख मारी और कहा -
'वाह गुरू, धाँसू चीज है.'

यानी हम गुरू के गुरू हो गये यह बताकर, गुरूघंटाल की पदवी से थोड़ी ही दूर.


इस तनाव भरे दृश्य की पृष्ठभूमि यह थी कि केजी गुरू अंदर जाकर वही कविता गुरुआइन को सुना आये थे उन्हीं को संबोधित करके अपनी लिखी हुई बता कर. बस कविता में उन्होंने 'मैं' को 'तुम' और 'तुम' को 'मैं' से बदल दिया था.

केजी गुरू मंद-मंद मुस्काते हुए अभी-अभी सुने हुए लेक्चर को दूसरे कान से निकालते हुए बोले - तुम भी कुछ लिखोगे ज़रूर इस पर, ऐसा हमें लगता है.

अब जब 'ऐसा लगता है तो लगने में कुछ बुराई नहीं', सो हम बोले - गुरू की आज्ञा सर आँखों पर.

केजी गुरु बोले - अब तम्हारे पहले प्रश्न का उत्तर तुम्हें प्राप्त हो गया होगा, सो अब जाओ और सुखपूर्वक ब्लागिंग करो. हमारा आशीर्वाद तो तुम्हारे साथ हई है.

हमने आदरपूर्वक केजी गुरू को प्रणाम किया और घर की राह ली.

13 comments:

विजय ठाकुर said...

बहुत अच्छे इंदर भैया, अब चंदन घिस ही रही है और फिरी फंड में उपलब्ध है सबके लिये तो क्यों न करें चंदन संत लोग। अब सारे लोगों में कम से कम एक समानता तो है ही कि सब के सब ठलुअई के मारे हैं। और अब ठलुअई तो "विश्व-धर्म" भी सा हो चला है। उस पर तुर्रा ये कि संतों में ये भाव तो होता ही है कि मेरी लंगोट उसकी लंगोट से ज्यदा लाल कैसे?

अनूप शुक्ल said...

पूरे एक महीने बाद नजर आये.हम तुम्हारे केजी गुरु के आभारी हैं जिनके तथाकथित आशीर्वाद से यह माहवारी संभव हुयी.अगर आज आफिस न जाना होता और कानपुर में थोङा कोहरा न होता तो हम उङ लिये होते अब तक पोर्टलैंड की तरफ केजी गुरु का आभार व्यक्त करने.नासा वाला 'स्क्रैमजेट' भी मंगा लिये थे जो भारत से अमेरिका एक घंटे में पहुंचा देता है.वैसे हम इस बात पर हैरान होने का मन बना लिये थे कि तुम्हारी कुछ हालत ठीक नहीं है.काहे से कन्या राशि का जिक्र हो और उसमें इंद्र पीछे रहे तो जरूर कोई गङबङ है.किसी अनिष्ट कीआशंका से हम अपने को लैश करने ही वाले थे कि संतो ने बचा लिया.खैर इसी कङी का हमारा भी दु:ख सुन लो .हम लिखने के बाद वीरता पूर्वक कन्या राशि के ब्लाग पर गये.बङी सजज्नता पूर्वक वहां नोटिस चिपका आये --कृपया इसके बारे में मेरे विचार पढें.दो दिन हम सांस रोके इंतजार "आयेगा आने वाला"भजते हुये इंतजार करते
रहे. कई बार अंग्रेजी तारीफों के गुलिस्तान में उजबक की तरह खिली अपनी हिंदी टिप्पणी को निहारते रहे.तीसरे दिन देखते है कि हमारी टिप्पणी उसी तरह हट गयी जिस तरह सफाई पसंद लोग अपने घर का कूङा तत्परता से साफ करके दूसरे के दरवाजे फेक देते हैं.जरा केजी गुरु से पूंछो क्या विचार हैं उनके इस सफाई अभियान पर.इधर भारतीय संस्कृति शिकायत कर रहीं है लगता है कि उमर हो गयी इसीलिये अब कोई पूछता नहीं .आजकल नये का जमाना है.

Jitendra Chaudhary said...

वाह गुरूजी, बहुत अच्छे,

आपने बिना नब्ज देखे ही, बीमारी जान ली. वैसे आपकी बात सुनकर मेरे को बहादुर शाह जफर का एक शेर याद आ गयाः

खुलता नही है हाल, किसी पर कहे बगैर
पर दिल की जान लेते है, दिलबर कहे बगैर

एक ब्लागर ही दूसरे ब्लागर की व्यथा जान सकता है, अब आपने अपने लेख मे लेखको को बहुत धो धो कर मारा है, लेकिन इस बात की खुशी है कि आप लौटे तो सही.

अच्छे लेख के लिये बधाई स्वीकारें.

इंद्र अवस्थी said...

जितेन्दर भइया, धोने-पोंछने के नाम से हम जड़ा जाते हैं, ई सब पाप नहीं करते. बाकी मौज लेने में जो मौज आती है उसकी बात ही कुछ और है. चूँकि तारीफ मिल गयी है सो उसके लिये आज हमरी गर्दन सुबह से अकड़ी है कल तक ठीक हो जायेगी सो चिंता न करना. शुक्रिया.

ठाकुर साहब, चंदन और लंगोट दोनों ही फिरी फंड के समझो. (वैसे भी दान के लंगोट के रंग नहीं देखे जाते). पर आपकी बात सत्य है, विश्व-धर्म हो तो ठलुअई जैसा वरना ना हो.


और शुकुल को क्या कहें, ये सारी वीरता दिखाने को वही जगह मिली थी. वैसे केजी गुरू को हम समस्या बताये, वो कहे कि शुकुल ऐसा करें, उस साइट पर एक झूठमूठ की टिप्पणी लिखें फिर मिटा दें, ऐसा दिन में दो मर्तबा खाना खाने के बाद करें ४ दिनों तक. फिर पाँचवे दिन नहा-धो कर सचमुच की टिप्पणी लिख कर प्रतीक्षा करें. शत्रु खेमे में हलचल मचाने का यह आदर्श तरीका है ऐसा केजी गुरू कहते हैं.

Yours Truly said...

Hm sab tippnaiya bojpuriya mai likane rahani, lekin boojh hi naahi punai ki eh bloggerva mai kaise post karin? murkh manahi th-harani.

Are Anoop Baboo, aap ko tipnnai ke saathe atnai bari gustakhi? aap k chithva dekh ko hum jaana gaili ki aap hmarahi oor k bhai bandhu hai. :-)

aare hmre chithva p spamva bhut aavela. hum PHP/SQL vaale databaseva mai ja ko sab spamva mitavat rahli. u sasura PHP/SQLva ka etna himmat ho gail rahal ki aap ka Hindi mai chamkat Shubh namava bhi hamke eak bade spam jaisan dekhvlav. hum gavar, ghabara ko oke mita dehali. O T jab aapan mail dekhali tab janai ki i t aap hai.

Aur bhai log, eak pristhti (situation) vaale kvitta p aap bhai log atana likh darani. :-) are hum gavaar jab sahar aaili t i sab dekh ko kavitt likh dihli. sahi mai thoda baut maan ho t kahe nahi e sab padahti aap log.

http://www.alkadwivedi.net/archives/000039.shtml
http://www.alkadwivedi.net/archives/000061.shtml
http://www.alkadwivedi.net/archives/000068.shtml

eahamei se kuch www.sulekha.com pa bhi chapal bai.

Aur hamaar Bhai Bandu log, Ommid hava tuhan pachan maati k Lal log Bhojpuriya samajhat Boojhat hoba.

Yours Truly said...

Inder Bhai Sahib, aap t bahut Gayani lagat bati. Hamake eak kavita bhar likale ke naate "shatru paksh" ka bata dehai? Shat Shat Naman Aap ke t. Aap t bahut Mahan lagat bati. Atna mahan logan ke beech hum pahali dafa milat baati. :-)

इंद्र अवस्थी said...

एक टिप्पणी के बदले हम तीन बार महान और दो बार ज्ञानी कहलाये. है ना चकाचक इनभेस्टमेंट जितेन्दर भइया?
पहली बार महान कहने पर हमें जो स्वयं की महानता के ऊपर जो शक था वह दूर हुआ. दूसरी बार कहने पर ऊ ससुरा अति- आत्म बिसवास में बदला. तिबारा तो हम "हू'ज हू" में अपना नाम क्यों न आया इस पर चिंतन कर रहे थे
कि आकाशवाणी हुई कि हे बुड़बक! ज्ञानी बन (और न हो तो किसी के कहे की लाज तो रख).
इसी बात पर श्रम को भुलाने के लिये सब ब्लागरगण एक कथा सुनें -
गाँधीजी जहाज से यात्रा कर रहे थे. एक सहयात्री अंगरेज जो उनसे चिढ़ता था उनके बारे में चार पन्ने का उल्टा-सीधा लिख कर और फिर पिन से कायदे से लगाकर गाँधीजी को दे गया. गाँधीजी ने पिन को निकालकर संभाल कर एक डिबिया में रख लिया और कागजों को रद्दी की टोकरी के हवाले किया. अंगरेज कहने लगा कि अरे आपने यह क्या किया? कितने काम की चीज उसमें लिखी थी. गाँधीजी बोले -- जो काम की चीज थी उसे मैंने संभाल कर रख लिया है.
सो हमने पृथ्वी से आकाश को बतलाया कि ऐसा है हम भी व्यंग या ताने में कोशिश करके लपेटी गयी तारीफ को खोल कर डिबिया में रख लिये हैं, सो आप निश्चिंत रहें और ऊपर की गौरमेंट चलायें.

और अलका जी, हमरी कही बतिया से तो आपने ठेलुहई को निकाल कर फेंक दिया रद्दी की टोकरी में और शत्रुता का भाव संभाल कर रख लिया मन की डिबिया में. हमारे नखलऊ में तो दोस्तों के हाल में भी दुश्मनों को याद करते हैं यों - आज दुश्मनों की तबीयत क्यों नासाज़ है?

अगली बार जब आप भोजपुर क्षेत्र जायें तो सामान बाँधने के साथ देख लें कि अचार, आम इत्यादि के साथ दो चार छटाँक ठेलुहई भी बँध जाय. फिर 'गर्व से कहीं कि हम गँवार बानी', वैसे तो आप खुदै ज्ञानी हैं.

अनूप शुक्ल said...

A.lekin boojh hi naahi punai ki eh bloggerva mai kaise post karin? murkh manahi th-harani.

B.Aur hamaar Bhai Bandu log, Ommid hava tuhan pachan maati k Lal log Bhojpuriya samajhat Boojhat hoba.

C.Shat Shat Naman Aap ke t. Aap t bahut Mahan lagat bati. Atna mahan logan ke beech hum pahali dafa milat baati. :-)

ये अंश टिप्पणी 5/6 के हैं.इसमें लिखने वाले ने अपने को मूरख और दूसरे टिप्पणी करने वालों को महान बताया है यह जोङते हुये कि ऐसे महान लोगों से पहली बार मुलाकात हुयी. लेकिन टिप्पणी का अंदाज बताता है कि यह किसी गंवार की टिप्पणी नहीं
है .यह अंदाज "शातिर ज्ञानी " का अंदाज है.आत्मप्रशंसा का यह तरीका "निन्दा स्तुति" का तरीका कहलाता है.इसमें कहने वाला अपनी बुराइयां करता है.दूसरों को महान बताता है.पर असल मकसद "महान" लोगों को उनके बौनेपन का एहसास कराना होता है.

जिनके हाजमें तारीफ की खुराक से बिगङे होते हैं उनको आलोचना खिंचाई की दवा मुफीद नहीं आती .सूट नहीं करती.सारी अंग्रेजी
भूल के अइली -गइली बतियाने लगती हैं ऐसी नायिकायें.कितने बार सीखा जायेगा लिखने का तरीका? भूलने की बात तो ठीक है .पर भुलक्कङपन की अल्हङता को हथियार की तरह प्रयोग करना कहां तक ठीक है.नीचे की सिलसिलेवार टिप्पणियां बताती हैं मेरी बात.ये टिप्पणियां पंकज भाई के हां भाई के विभिन्न पोस्ट से है.

पंकज से आखिरी सीख परसों ली गयी.समय नहीं मिला होगा अभ्यास का यह मानते हुये भी टिप्पणी की प्रकृति के बारे में मेरी राय यही है.आशा है अब तक दो चार छंटाक ठेलुहई का इंतजाम कर लिया गया होगा .


1.Pankaj, Mujhe pata nahi, ki yahan pe hinhi mei comment kaise kauron. is hausalaafzai ke liye sukriya. mai aap ki bahut aabhari hun ki aap ne meri kavita ko itna samay de kar anuvaad kiya. samajh mei nahi aata aur kya likhun. eak baar aur dhanyavaad kahati hun.

Comment द्वारा Alka — नवम्बर 15, 2004 @ 5:54 am

2.oh! Maine samajha tha ki deepak ka hi yeh hindi blog hai. :-)
lekin meri kavita ko devnagari mei likhne ke liye dhanyavad. aap ka kahana sahi hai, isko devnagri mei dekhane ka apana hi maza hai. :-)

Comment द्वारा Alka — नवम्बर 15, 2004 @ 6:03 am

3.HA HA HA. :-) Lagata hai hum sabhi abhi bhi Deepawali ki masti se ubren nahi hai. :-)Pankaj ji mai aapke blog mei hindi mei kaise likh sakati hun?

Comment द्वारा Alka — नवम्बर 16, 2004 @ 2:39 am

4.अल्का,

शुरुआत के लिए सबसे आसान तरीका है

http://www.chhahari.com/unicode/

यह केवल IE पर काम कर रहा है। फॉयरफॉक्स पर मेरे से नहीं चला। तो अपनी टिप्पणी छाहरी पर लिखिए और वहाँ से कट-कॉपी-पेस्ट कीजिए।

दूसरा तरीका है तख्ती नाम का छोटा सा सॉफ्टवेयर जो कि आप यहाँ से ले सकते हैं
http://www.geocities.com/hanu_man_ji/

हिन्दी लिखने का सबसे बढिया तरीका यदि आप काफी कुछ हिन्दी में लिखते हैं हिन्दी IME है जिसके बारे में आप यहाँ से पढ़ सकती हैं

http://devanaagarii.net/#Windows

यहाँ Optional for Windows वाला सेक्शन देखिए।

Comment द्वारा पंकज — नवम्बर 16, 2004 @ 7:56 am

5.पंकजजी मेरी मदद करने करने के लिए धन्‍यवाद.
मुझे आप की पुरानी पोस्‍ट भी, खासतौर से “क्‍या देह ही सबकुछ है ”
भी बहुत पसंद आयी. आज के उपभोक्‍तावाद के दिनो मे
भी ऐसी पोस्‍ट पढकर बहुत अच्‍छा लगता है.

Comment द्वारा Alka — नवम्बर 18, 2004 @ 9:17 am

6.अल्का तारीफ के लिए शुक्रिया।

दीपक अब अपनी इसी हिंदी वाली कलम से अपने दिल के गीतों को भी देवनागरी में परिवर्तित कर दें सोने पे सुहागा हो जाए।

Comment द्वारा पंकज — नवम्बर 19, 2004 @ 12:30 pm


7.Hi Pankaj, after such a long time I read something very good in Hindi. You have good command over the language. Hope to read more and more on this line.
One more thing, I don’t know how to write comment on blogspot in hindi. Will you tell me? :-)

Comment द्वारा Alka — नवम्बर 25, 2004 @ 2:59 pm

8.अल्का,

हिन्दी में ब्लॉगस्पाट पर आप वैसे ही टिप्पणी कर सकती हैं जैसे की आपने यहाँ मेरी एक प्रविष्टि पर की थी। अपने मन पसंद के प्रोग्राम(तख्ती)में या फिर ऑनलाइन लिखें और कट कापी पेस्ट कर दें। वैसे सबसे बढिया तरीका IME का है। अधिक जानकारी के लिए पढ़े जीतेन्द्र का

http://nrilife.blogspot.com/2004/10/how-to-write-in-hindi-on-web.html

Comment द्वारा पंकज — नवम्बर 25, 2004 @ 5:03 pm

Jitendra Chaudhary said...

अलका जी,
अब लगे हाथो, अपनी टिप्पणी का हिन्दी मे लिख दीजिये,
ये रोमनवा हिन्दी, हम नही बूझ पाते है भई.

आलोक said...

ठलुआ जी, क्या आप कानपुर में हैं?

इंद्र अवस्थी said...

अतुल भइया, हम तो पोर्टलैंड में ही हैं हाँ ये मन ससुरा जरूर कानैपुर के पास चक्कर मारा करता है।

Unknown said...

हम भी अनूप जी बात से काफ़ी सहमत हैं। ये जो भोजपुरी बोलने वाला इश्टाइल है ना उसका श्री लाल शुक्ला की 'राग दरबारी' में बहुत अच्छा वर्णन है: गांव के कालेज के प्रिन्सिपल (हां प्रिन्सिपल) साहब वैसे तो अंग्रेजी में ही बोलते हैं शान जमाने के लिये लेकिन जब खीज आती है तो अंग्रेज़ी छोड़ कर ठेठ भोजपुरी पर उतर आते थे। लगता है कि अलका जी पर भी ऐसा ही कुछ लागू होता है।

जबाब कृपया देवनागरी में ही दें, हमको रोमन लिपि में हिन्दी पढ़ने में अत्यधिक कष्ट होता है।

Unknown said...

हमे भी बहुत अच्छा लगा जान के भोजपुरी मै बहुत से लोग दिन पे दिन इंतेरेस्त ले रहे हैन मुल्तह हुम भी भोजपुरी बोल्ते है। आज जब आपका साइट देखा तो बहुत अक्छा लगा कि भोजपुरी किताबो से निकल के वॆब पॆ अ ग़इ है।