Wednesday, September 01, 2004

आइये न, ठलुअई करें

Theluwa
योंही ठलुहई का जब बैठे-बैठे विचार बना तो पाया कि संसार में कमी तो है नहीं ठलुओं की । बकौल गालिब
एक ढूँढो हजार मिलते हैं
बच के निकलो टकरा के मिलते हैं (किसी ठलुए का ऐडीशन)।
तो हम सोचे कि काहे नहीं इस प्रजाति के लोगों को इकट्‍ठा किया जाये ।
कहना न होगा कि हमारे मित्र शुकुल बड़े बेचैन थे कुछ इस तरह की गतिविधि के बिना । और अगर सच्ची बात बतायें तो हमारी तबियत भी ठीक तो नहियै लग रही थी ।
तो निमंत्रण है तमाम ठलुओं को इस यज्ञ में शामिल होने के लिये इस शपथ के साथ कि
- 'यहाँ पर ठलुअई और मात्र ठलुअई होगी और इसके सिवा अन्य कुछ न होगा' ।

अब प्रश्न यह उठता है कि ठलुअई की परिभाषा क्या है -
एक परिभाषा सन्तों की सेवा में सादर प्रस्तुत है,
'ठलुअई मानसिक चेतना की देश, काल, जाति, धरम, आयु से परे वह अवस्था है जिसको प्राप्त होकर प्राणी ठलुआ कहलाता है । इस दशा को प्राप्त व्य‍क्ति की संगति के गुणों के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ इसे कल्याणकारी बताते हैं एवं कुछ मूढता वश ऐसे लोगों से दूर रहने की राय देते हुए भी पाये गये हैं ऐसा भी यदा कदा सुनने में आया हैः किन्तु वास्तविक ठलुआ इन सब गुत्थियों से विरक्त‍ होकर ठलुअई के आदर्श कर्म में लीन रहता है। ऐसे कर्म‍योगी को हम सबका शत-शत प्रणाम स्वीकार हो '
तो आइये न !

3 comments:

अनूप शुक्ल said...

मन खुश हुआ ठेलुहा की शुरुआत देखकर.आगे की ठेलुहई का इन्तजार शुरु
हो गया.ठेलुहों की कुछ हरकतें यह यह भी कहती हैं:-

१.मस्तराम मस्ती में,आग लगे बस्ती में.

२.दम बनी रहे,घर चूता है तो चूने दो.

फिलहाल तो इन्तजार है आगे की हरकत का.हरकतों में बरक्कत होती रहे यह कामना है.

इंद्र अवस्थी said...

आग लगी हमरी झोपडिया में, हम गावैं मलहार!

ankit said...

आपकी ठलुअई के प्रति शुभ विचार देखकर अत्यन्त आनंद हुआ , अन्यथा लोगों के ठलुओं के प्रति विचार देखकर हमें अत्यन्त दुःख होता था...